मेरे इस लेख के माध्यम से दिवंगत फोटो जर्नलिस्ट
भाई राजीव कुमार को भावभीनी श्रद्धांजली 💐💐🙏🙏
राजीव भाई हमारी फोटो का ध्यान रखना, कल अखबार में छप जाए बस...
तो क्या पत्रकार और फोटो जर्नलिस्ट से उसकी सांसों के साथ ही टूट जाती है राजनीतिक और सामाजिक लोगों के संबंधों की डोर...?
पिछले कई दशक से नगर के राजनीतिक,सामाजिक कार्यक्रमों और पत्रकार वार्ताओं में फोटो क्लिक करते अक्सर नजर आने वाले राजीव कुमार अब शारीरिक तौर पर किसी को कभी नजर नहीं आएंगे,और ना ही वो लोग उनसे अपना फोटो क्लिक करा प्राथिमकता से समाचार पत्र में प्रकाशित कराने के लिए उनकी खुशामद धरामद करते उनके आगे पीछे दिखाई देंगे। कई दशक तक सही एंगल और प्रफेक्ट फ्रेम के साथ फोटो क्लिक करने के लिए पहचाने जाने वाले और तमाम बड़े अखबारों के लिए बतौर फ्रीलांसर फोटो जर्नलिस्ट काम कर चुके राजीव कुमार का लम्बी बीमारी के बाद अल्प आयु में गुरुवार को दिल्ली स्थित अस्पताल में ईलाज के दौरान देहांत हो गया। सोचता हूं अभी उन्हें ओर हमारे बीच रहना चाहिए था और पत्रकारिता के क्षेत्र में फोटो जर्नलिस्ट के तौर पर कई आयाम तय करने चाहिए थे। लेकिन नियति को यही मंजूर था, और क्योंकि यह सच्चाई भी अटल है कि जो इस नश्वर संसार में आया है उसे एक न एक दिन पहले या कुछ देर बाद इस संसार को छोड़कर जाना ही होता है। राजीव कुमार के जाने का सभी को गहरा अफसोस और दुख है, लेकिन यहां सवाल यह नहीं है कि राजीव अब हमारे बीच में नहीं रहे बल्कि यहां आश्चर्य तथा सबसे बड़ा दुख और मुद्दा यह है, कि राजीव की जिंदगी में विभिन्न कार्यक्रमो के बाद उनके द्वारा क्लिक किए गए अपने फोटोग्राफ अगली सुबह समाचार पत्रों में छपवाने और देखने के तमन्नाई इस शहर के कुछ राजनीतिक और सामाजिक लोग इस कदर नाशुक्रगुजार निकले कि उन्होंने राजीव कुमार की अंतिम यात्रा में शामिल होना तो दूर श्मशान घाट का रुख करना तक गवारा नहीं किया और गुरुवार को जब राजीव कुमार का पार्थिव शरीर हापुर रोड स्थित शमशान घाट पहुंचा तो अनअपेक्षित रूप से शहर के उन तमाम राजनीतिक और सामाजिक लोगों में से कुछ ही चेहरे उनकी अंतिम यात्रा और विदाई के मौके पर नजर आए। मैने अस्वाभाविक तौर पर जब राजीव कुमार की अंतिम क्रिया के वक्त उन चेहरों की तलाश में नजर दौड़ाई जो चेहरे राजीव की जिंदगी में कार्यक्रमों के दौरान अक्सर उनकी मान- मनौव्वल और बाकायदा खुशामद करते नजर आते थे कि राजीव भाई हमारे फोटो का ध्यान रखना और कल के अखबार में छपवा जरूर देना उन राजनीतिक और सामाजिक लोगों में से ज्यादातर चेहरे राजीव कुमार की मृत्यु के बाद उनके अंतिम संस्कार के वक्त शमशान घाट से दूरी बनाए रहे ? मन में स्वाभाविक रूप से इस सवाल ने भी सर उठाया कि क्या किसी पत्रकार या फोटो जर्नलिस्ट की जिंदगी में राजनीतिक और सामाजिक लोगों से बेहद प्रगाढ़, आत्मीय और मजबूत नजर आने वाले रिश्तों की डोर उनकी सांसों के साथ ही टूट जाती है? चुंकि इन कुछ लोगों की गैर मौजूदगी से उस वक्त यही विचार मन में आया कि इसे उन लोगों के लिए राजीव की मृत्यु की सूचना प्राप्त होने का अभाव समझा जाए? उन लोगों की मजबूरी समझा जाए? या काम की व्यस्तता समझा जाए? तो जवाब यही था कि नही ये तमाम तथ्य किसी सामान्य व्यक्ति की मृत्यु पर तो समझ में आ सकते थे लेकिन क्योंकि राजीव कुमार पत्रकारिता के क्षेत्र का एक जाना पहचाना नाम थे और उनसे शहर के तमाम राजनीतिक और सामाजिक लोग परिचित थे लिहाजा उपरोक्त कारण समझ से परे थे। यहां जिक्र के काबिल तथ्य यह भी है कि सूचना क्रांति और इंटरनेट के इस युग में कोई भी छोटी से छोटी जानकारी जंगल की आग की तरह फैल जाना सामान्य सी बात है लिहाजा यह कहना बिल्कुल भी उचित नहीं होगा कि शहर के गणमान्य लोगों को राजीव कुमार की मृत्यु की सूचना प्राप्त नहीं हुई थी।
इन तमाम तथ्यों की जद में इस हकीकत को बयां करने में मुझे किसी भी प्रकार का संकोच या भय नहीं है कि पत्रकारों और फोटो जर्नलिस्टों की मौत लोगों के लिए ज्यादा मायने नहीं रखती है और लोगों की सोच यही होती है कि मर गया तो क्या हुआ एक मामूली कलमकार ही तो था। पत्रकारों व छायाकारों की मौत के प्रति लोगों की ऐसी ओछी और संकुचित मानसिकता पर मुझे यह कहने में भी कोई हिचक नहीं है कि शहर के राजनीतिक और सामाजिक लोगों का राजीव कुमार या किसी भी पत्रकार अथवा फोटो जर्नलिस्ट की मौत पर यह रवैया कलमकारों और छायाकारों के प्रति उनका नाशुक्रापन और गहरी संवेदनहीनता है, जो किसी भी स्थिति में हर एक पत्रकार तथा फोटो जर्नलिस्ट के लिए नाकाबिल ए बर्दास्त और काबिल ए गौर होनी चाहिए। शायद मेरा यह लेख पढ़ने के बाद शहर के इन कुछ संवेदनहीन राजनीतिक और सामाजिक लोगों को इसका अहसास हो और ये लोग राजीव कुमार द्वारा अपने कैमरे की मदद से की गई उनकी खिदमत का अहसास और गैरत उन्हें राजीव कुमार के घर का रुख करने के लिए प्रेरित करें और ये लोग उनके चित्र पर श्रद्धांजलि अर्पित कर उनके प्रति सच्चे मन से अपनी कृतज्ञता जाहिर कर अपनी भूल का प्रायश्चित करने पहुंचे। समय रहते भूल सुधार लेनी चाहिए और इसमें कोई हर्ज भी नही है। चुंकि अभी देर नहीं हुई है। और मृत्यु तो असंभावी है सभी को आनी है। और फिर किसी ने कहा भी तो है कि...
मौत से किसकी यारी है
आज मेरी कल तेरी बारी है...!
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