पार्टी को पटरी पर लाने के लिए सपा मुखिया को पार्टी के साथ साथ आला नेताओं की भी ओवरहालिंग किए जाने की ज़रूरत है - विनोद सैन

मोदीनगर (अनवर ख़ान)। लोकसभा चुनाव में अपेक्षित परिणाम न आने के बाद समाजवादी पार्टी की ओवर हालिंग करने के उद्देश्य से पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव द्वारा जा रही कवायद सराहनीय है। किंतु पार्टी को पुनः पटरी पर लाने के लिए सपा मुखिया अखिलेश यादव को पार्टी के राष्ट्रीय स्तर के नेताओं को भी पार्टी की नीतियों का सबक सही से पढ़ाने और उस पर अमल कराए जाने की भी आवश्यकता है।
      उक्त विचार पूर्व सपा नेता  विनोद सैन ने एक भेंटवार्ता के दौरान व्यक्त करते हुए कहा कि सपा मुखिया को घोषित प्रत्याशी का ऐन वक्त पर टिकट काटकर टिकट के लालच में अपनी पार्टी को छोड़कर सपा में शामिल होने वाले मौकापरस्तों को टिकट थमा देने जैसी नीति पर भी विचार कर अंकुश लगाना होगा। क्योंकि इस अनीति से उन नेताओं और कार्यकर्ताओं पर  असर पड़ता है जो पार्टी में रहते हुए लोहिया जी की विचारधारा का अनुसरण करते हैं। समाजवादी आंदोलनों में पीछे न हटकर पुलिस की लाठियों को अपने जिस्म पर झेलते हैं। पार्टी को ही परिवार मानकर उसके सम्मान को बनाए रखने के लिए जेल जाने से भी नहीं डरते हैं। उन्होंने कहा कि पार्टी के लिए सर्वस्व न्यौछावर करने वाले ज़मीनी नेताओं का जब चुनाव लड़कर पार्टी को और मज़बूत करने का समय आता है और उनकी अवहेलना कर टिकट की चाह में आला नेताओं से सेटिंग कर पार्टी में शामिल होने वाले नए चेहरों को पार्टी के हाथों पर लेकर आला नेताओं के ही इशारों पर उनको टिकट दे देती है तो पार्टी का यह व्यवहार पार्टी के ज़मीनी नेताओं के साथ ही उनके उन समर्थकों को भी आहत और निराश करता है जो अपने नेता को विधायक या सांसद बनाने के लिए ज़मीन आसमान एक कर देते हैं। आला नेताओं द्वारा ऐन वक्त पर टिकट काटे जाने वाले ऐसे फैसले अधिकांश पार्टी के अंदर भीतरघात होने की स्थिति तो उत्पन्न करता ही है साथ ही पार्टी की छवि पर भी सवालिया निशान लगाता है। कभी कभी पार्टी के आला नेताओं द्वारा लिए गए इन ग़लत फ़ैसलों के दुष्परिणाम प्रत्याशियों की हार के रूप में सामने आते हैं। विनोद सैन ने 2019 में हुए लोकसभा चुनाव में गाजियाबाद से गठबंधन प्रत्याशी सुरेश बंसल की भारी हार का उदाहरण देते हुए कहा कि गठबंधन के बाद गाजियाबाद की सीट सपा के खाते में आई थी। जिसके बाद पार्टी ने अपने जिलाध्यक्ष सुरेंद्र कुमार मुन्नी को गाजियाबाद लोकसभा क्षेत्र से प्रत्याशी घोषित किया था। किंतु चुनाव से ऐन पहले सुरेंद्र कुमार मुन्नी का टिकट काटकर बसपा छोड़कर सपा में शामिल हुए सुरेश बंसल को थमा दिया। पार्टी के आला नेताओं के इस फैसले का खामियाजा पार्टी को गाजियाबाद सीट गवां कर चुकाना पड़ा। और पराजित होने के बाद सुरेश बंसल ने सपा को छोड़कर पुनः बसपा का दामन थाम लिया। विनोद सैन ने सपा के आला नेताओं के इसी रवैए से उपजी अपनी पीड़ा को ज़ाहिर करते हुए कहा कि वर्ष 2012 के विधानसभा चुनाव में पार्टी द्वारा चुनाव से करीब नौ माह पूर्व उन्हें मोदीनगर विधानसभा प्रत्याशी घोषित किया गया था। और प्रत्याशी घोषित होते ही चुनाव में जीत दर्ज कराने के लिए उन्होंने रात दिन एक कर दिया था। प्रचार के दौरान विधानसभा क्षेत्र के चप्पे चप्पे की ख़ाक छानते हुए क्षेत्रवासियों को पार्टी की योजनाओं और नीतियों से अवगत कराते हुए पार्टी की ओर लाने का कार्य शुरू कर दिया था। अपने समाज के अलावा सभी धर्म मज़हब के लोगों का पार्टी के प्रति विश्वास कायम कराने के लिए तन मन धन से काम किया। किंतु पार्टी के तत्कालीन आला नेताओं ने चुनाव से मात्र 19 दिन पूर्व उनका टिकट काटकर रामआसरे शर्मा को देते हुए उन्हें रामआसरे शर्मा को तन मन धन से चुनाव लड़वाने का फ़रमान जारी कर दिया। पार्टी के शीर्ष नेतृत्व के इस फ़ैसले का वो हश्र हुआ कि सपा प्रत्याशी रामआसरे शर्मा को पराजय का मुंह देखना पड़ा। विनोद सैन ने अपनी बात जारी रखते हुए कहा कि समाज के लिए कुछ कर गुजरने की तमन्ना रखने वाले लोग पार्टी का दामन थाम कर जब राजनीति में पदार्पण कर तन मन धन से पार्टी की नीतियों पर चलकर धरातल पर मेहनत करते हैं। किंतु पार्टी के शीर्ष नेताओं द्वारा ऐन वक्त पर टिकट काटे जाने पर उनको जो अपमान झेलना पड़ता है, उसे शब्दों में व्यक्त करना कठिन है। यही नहीं टिकट कटने के बाद पार्टी द्वारा जारी किए गए फ़रमान को मानकर पुनः क्षेत्र में जाकर उसी  नए प्रत्याशी के लिए वोट मांगने के लिए उन्हीं वोटरों से रूबरू होना कोई आसान बात नहीं होती। उन वोटरों की आंखों में झांकते सवाल और उनका लहजा अपमानित करने वाला सा प्रतीत होता है। विनोद सैन ने कहा कि पद लेकर वातानुकूलित बन जाने वाले नेताओं के कार्यों की समीक्षा पार्टी मुखिया को समय समय पर करते रहना चाहिए, ताकि उन वातानुकूलित नेताओं के कारनामों की सच्चाई पता चलती रहे और समय रहते ऐसे नेताओं पर अनुशासनात्मक कार्रवाई करते हुए धरातलीय और लोकप्रिय नेताओं को तवज्जो दी जाए। उन्होंने कहा कि समाजवादी पार्टी को हाशिए पर डाल दिए गए सैन समाज जैसे अनेकों वंचित समाजों को अपने विश्वास में लेने की अत्यंत आवश्यकता है। उन्होंने कहा कि प्रदेश में भारतीय जनता पार्टी का विकल्प सिर्फ समाजवादी पार्टी ही है। और यदि अभी भी सपा मुखिया अखिलेश यादव ने इन गंभीर मुद्दों का संज्ञान लेते हुए स्वविवेक से मंथन नहीं किया तो पार्टी को और भी गंभीर परिणाम भुगतने होंगे।