सोशल मीडिया के सकारात्मक इस्तेमाल ने एक गुमनाम फ़नकार को पहुंचाया फर्श से अर्श तक

अभी कुछ दिन पहले न जाने किस मित्र की फेसबुक वॉल पर एक वीडियो देखी थी, वीडियो की पृष्ठभूमि किसी रेलवे स्टेशन की सी लग रही थी, जिसमें मैली कुचैली सी साड़ी में लिपटी और उलझे हुए खिचड़ी से बालों वाली एक सांवली सी महिला फिल्म शोर का गीत "एक प्यार का नगमा है" गा रही थी। इससे पहले कि मैं इस विडियो को दरकिनार करके आगे बढ़ता, इस महिला की आवाज़ ने मोबाइल पर चल रही मेरी अंगुलियों पर रोक लगा दी, मैंने एक पल की भी देर न करते हुए ईयरफोन मोबाइल से कनेक्ट कर उसके स्पीकर कानों में लगा लिए। उफ़्फ़, इतनी पुरक़शिश आवाज़...मानों जैसे स्वर कोकिला लता मंगेशकर ही गा रही हों। दिल से बेसाख़्ता उसके लिए दुआओं का दरिया फूट पड़ा।


       चंद दिनों बाद ही फिर फेसबुक पर ही पढ़ा कि सोशल मीडिया पर वायरल उसी वीडियो को देखकर किसी सामाजिक संस्था ने उस फ़नकार को ढूंढ निकाला। जिसका नाम रानूक्षमोंडल है और वो पश्चिम बंगाल के रानाघाट रेलवे स्टेशन पर गाना गाकर अपना गुजर-बसर कर रही थी। उस सामाजिक संस्था ने मैली कुचैली साड़ी में लिपटी उस फ़नकार को संवार कर उसके वजूद को उसकी मख़मली आवाज़ की मानिंद ही मख़मली शिफॉन की साड़ी में लपेट दिया। मैंने भी जब मेकओवर हुई रानू मोंडल की फोटो को देखा तो पहचानने में ज़रा देर लगी।
      और आज सुबह फेसबुक पर ही देखा कि रानू मोंडल नाम की वही मधुर आवाज़ की मलिका माइक के सामने खड़ी होकर अपने सुरों के जलवे बिखेर रही हैं और उनके पास खड़े हुए म्यूज़िकल हिट मशीन के नाम से मशहूर 2006 में लंदन के वेम्ब्ले स्टेडियम में प्रदर्शन करने वाले पहले भारतीय कलाकार हिमेश रेशमिया रानू मोंडल की हौसलाकुन इशारों से हौसला अफ़ज़ाई कर रहे हैं.....थोड़ा खोजने पर पता चला कि हिमेश रेशमिया ने अपनी अपकमिंग फिल्म "हैप्पी हार्डी एंड हीर" में रानू मोंडल को गाने का मौका दिया है। और इसी फिल्म में रानू मोंडल ने "तेरी मेरी कहानी" नाम का गाना गाया है.....यह देखकर दिल को एक सुकून सा मिला और नज़रें ख़ुद ब ख़ुद आसमां की ओर उठकर ख़ुदा का शुक्र अदा करने लगीं।
     ख़ुदा का शुक्र अदा करने के बाद पहले तो उस शख़्स को सलाम जिसने इनकी गायकी की वीडियो बनाकर उसको वायरल किया, उसके बाद उस सामाजिक संस्था को नमन जिसने इनको तलाशा और संवारा, उसके बाद हिमेश रेशमिया के जज़्बों को सलाम जिसने इनकी क़ाबलियत की क़द्र की और अपने साथ युगल गीत गाने का मौका देकर रानू मोंडल को सेलेब्रिटी बना दिया।
इस सारे मामले से एक मशहूर कहावत "ख़ुदा कब, किसको और कहां नवाज़ दे, इस दुनिया में कोई नहीं जानता" पर भी यकीन पुख़्ता हो गया। साथ सोशल मीडिया की सार्थकता पर भी भरोसा हो गया, क्योंकि इस बेहतरीन फ़नकार को इस मुक़ाम तक पहुंचाने में सोशल मीडिया एक बहुत बड़ा ज़रिया बनी है। जिससे ये साबित होता है कि सोशल मीडिया के मंच का अगर हम नकारात्मक की बजाय सकारात्मक रूप में इस्तेमाल करें तो परिणाम भी सकारात्मक ही मिलेंगे।